कागज़ों के रावण ही जलेंगे अब,
एक रावण मन में भी तो बैठा है !
द्वेष नफरत खिली चेहरे पर,
त्योहारों पर पहरा बैठा है !
सीख भजन की दब गयी कहीं,
यहाँ गला फाड़ सब बैठा है !
एक राम विजय का पर्व मनाते;
अब कई राम पराजित बैठा है !
मानवता को तू भूल रहा ;
ये कैसा हठ तू ले बैठा है !
जला सको तो जला लो तुम भी,
रावण जो तेरे अंदर बैठा है !
#Sujit …
सच कहा आपने कागज के रावन को जलाने से बुराईया नहीं मिटेंगी उसके लिए हमें अपने अन्दर के रावन को मिटाना पड़ेंगा, धन्यवाद्