नफरतों में शामिल तुम हो नहीं सकते ;
मोहब्बत और नफरत के बीच किसी रस्ते पर,
तुम अब भी रहते हो !!
नदी के दो किनारे जैसे,
उचक उचक कर बस देखते,
बीच में लहरों ने कुछ ओझल सा कर रखा है !
मेरे अंदर का मैं,
मुझसे ही लड़ता है,
तेरे नाम की बगावत में,
घंटो उलझे रहते है दोनों !
एक नफरत की नुमाइंदगी करता,
एक उसे जी भर समझाता,
एक मन के अंदर दो मन,
बड़ी कश्मकश में जीते है दोनों !
#Sujit