अब बहुत ही दूर चला गया । हाँ इस इंटरनेट के अनंत संसार से परे ; पता नहीं कितनी दूर हाँ जहाँ से कोई संवाद नहीं होगा , कोई खबर नहीं होगी तुम्हारी । होंगे जिंदगी के अपने अपने उत्सव ;अपनी अपनी मायूसी में खोये रहेंगें, क्यों कहेंगे तुमसे ? होंगी उलझने भी बस अब तुझसे नहीं कहूँगा !
कितनी दूर चले गए ; ये फेसबुक और जीटॉक ही तो हमें मिलाता था । कब मिलते थे ; लेकिन मिलने से कहीं ज्यादा मिले थे ; इस दुनिया से भी परे चले जाओगे ? एक दिन तो ऐसा ही होगा ; हाँ अजनबी बन के बेखबर से रह जायेंगें कौन कब कहाँ चला जायेगा !
हाँ ये अब नहीं मिला सकता हमें ; इंटरनेट की तरंगे शिथिल हो गयी जब पास आके हम नहीं मिले ! आस पास के शहर में होने का सुकून था । दोनों एक तरफ के चाँद को देखते थे एक ही जगह बिल्डिंग के पीछे ; एक ही तरह का सुबह बालकनी के सामने निकलता सूरज ।मेरे संवाद तब तो सुबह और शाम के समय की पाबंद थी, तुम्हारे इनबॉक्स में रोज आ धमकने की आदत । हाँ तो अब ? …. अब अलग अलग शहर ! अजनबी बनाता है ये शहर भी, वो शहर कुछ पास होने का सुकून देता था लगता था जैसे किसी गली में कोई चेहरा तुमसा दिख जायेगा । कभी हम मिल पायेंगे ।
पर दूर आके अब उम्मीद है कभी नहीं मिलेंगे । खो जायेंगे अपनी गली में ; किसी चेहरे में तेरे होने की उम्मीद भी नहीं होगी ।
सच में भूल भी जाओगे ? क्या कभी याद करोगे ?
कुछ सवालों को अनुत्तरित रह जाना चाहिये …
#SK in Inbox Love …