राजनेताओं में अटल जी एक है जिनको देख कर सुनकर राजनीति को देखने समझने में दिलचस्पी बढ़ी ! चुनाव प्रचार में उनको करीब से देखने और सुनने का अवसर प्राप्त हुआ, उनकी वाक्पटुता और संवेदनशील भाषाशैली ने बहुत प्रभाव डाला मन पर ! कवि के रूप में , एक राजनेता के रूप में मेरे पसंदीदा व्यक्तित्व में से एक !!
सदन के भाषणों में कभी गंभीर तो कभी हास्य चुटकियों के बीच राजनीति के जिस मानकों को उन्होंने स्थापित किया आजकल के राजनीति में वो कहीं नजर नहीं आता, सदन में हार पर सम्बोधन पर वो कहते “सरकारें आएगी जाएगी सत्ता आती है जाती है मगर यह देश अजर. अमर रहने वाला है” जब वो विपक्ष में रहते भारत का पक्ष रखने विदेश के एक सम्मलेन में गये “पाक के नेता ने कहा कि कश्मीर के बगैर पाकिस्तान अधूरा है. तो जवाब में वाजपेयी ने कहा कि वो भी ठीक है. पर पाकिस्तान के बगैर हिंदुस्तान अधूरा है ”
अटल जी का व्यक्तित्व प्रखर रहा है ; जब वो सक्रिय राजनीति में थे उनको राजनैतिक सभाओं में सुनने का अवसर मिला था ; शांत चित्त संवेदनशील, बेबाक वक्ता, एक कवि ! उनकों सुनना हमेशा से प्रेरणादायक है ! राजनीति में अनुशासन और गरिमामय आचरण के वो हमेशा प्रतीक रहे हैं ! उनके जन्मदिवस पर उनको नमन !
एक कविता उनके द्वारा रची गयी ~
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“कौरव कौन, कौन पांडव”
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
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अटल बिहारी वाजपेयी – राजनीति की आपाधापी से दूर …
उनके संवेदना के स्वर से एक कविता
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ज़िंदगी के शोर,
राजनीति की आपाधापी,
रिश्ते-नातों की गलियों और
क्या खोया क्या पाया के बाज़ारों से आगे,
सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है, जहाँ पहुँच कर इन्सान एकाकी हो जाता है…
… और तब जाग उठता है कवि | फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरें बनती हैं…
कविताएँ और गीत सपनों की तरह आते हैं और कागज़ पर हमेंशा के लिए अपने घर बना लेते हैं |
अटलजी की ये कविताएँ ऐसे ही पल, ऐसी ही क्षणों में लिखी गयी हैं, जब सुनने वाले और सुनाने वाले में, “तुम” और “मैं” की दीवारें टूट जाती हैं,
दुनिया की सारी धड़कनें सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं,
और कवि के शब्द, दुनिया के हर संवेदनशील इन्सान के शब्द बन जाते हैं !
Samvedna : Atal Bihari Vajpayee
क्या खोया क्या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोले-अपने ही मन से कुछ बोले
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं, यद्यपि सौ सर्दों की वाणी
इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाज़ा खोलें…अपने ही मन से कुछ बोले
जन्म मरण का अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ कल वहाँ कूच है, कौन जानता किधर सवेरा
अँधियारा आकाश असीमित प्राणों के पंखों को खोले…अपने ही मन से कुछ बोले
क्या खोया क्या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोले-अपने ही मन से कुछ बोले !
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# उनकी कुछ रचनाएँ #
सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।
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बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ !
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टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ !
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सबसे अलग-थलग, पिरवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बंटा, शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है।
मेरे प्रभु
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूँ, इतनी रुखाई कभी मत देना
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उनके दीर्घायु की कामना के साथ जन्मदिन मुबारक अटल जी को !