धुंध के दोनों पार बैठे हम
वहम भी है होने का और नहीं भी
तुम भी बोलते कभी कभी
कभी कभी कुछ मैं भी कहता हूँ
धुंध में खोये दो अजनबी से
ओस की चादर के उस ओर
से इस पार खींच पाता तो
एक गर्माहट सी होती रिश्तों की !
ये धुंध भी न एक अहं है
रोके रखता है दोनों पार
दो अजनबियों को !!
#SK