हिंदी सिनेमा जब डीडी नेशनल पर शुक्र शनि और रविवार को आता था, आज उस उत्सवी माहौल का अंदाजा लगाना मुश्किल है । 2 दिन पहले से साईकल पर बैटरी चार्ज के लिए पहुँचाना । बैटरी का चुटा गरम पानी से धो के तैयारी का जायजा ले लिया जाता था । 50 घर पर एक टीवी । सोच सकते awww क्रेज कितना चरम पर होता होगा । कुछ दिन पहले से कौनसी फ़िल्म किस दिन आएगी चर्चा में आ जाती थी । अब तैयारी दिन से ही गृहणी की धमकी आज शाम में रोटी सब्जी बन जाएगा सिनेमा के वक़्त कोई किच-किच नहीं चाहिए ।
जिसके घर मे टीवी होता था उनको आयोजन के लिए पूर्व तैयारी करनी पड़ती थी घर के सारे कुर्सी बेंच स्टूल मचिया चटाई दरी बोरा सेट करके अपने जगह पर रख दिया जाता था । बड़े बुजुर्ग सोफा कुर्सी चौकी पर, बच्चे चटाई बोरा पर , औरतें पीछे अपने झुंड में, अब बारी आती थी एंटीना एक्सपर्ट, बैटरी एक्सपर्ट, ब्राइटनेस कंट्रास्ट वॉल्यूम मैनेजर सब आगे टीवी के पास बैठते थे कि किसी आपात स्थिति पर नजर बनाए रखते थे ।
अब कुछ तेज तर्रार बनने वाले उत्साही बीच बीच मे कहते अब अमिताभ बच्चन को गुंडा घेरेगा, धर्मेंद्र अब ट्रैन से कूदेगा, असली खूनी ये है … ऐसे में लगता था एक तबरॉक कान के नीचे । ढेर होशियार बनते हो VCR पर देख लिए हो पहले से तो चुपचाप बैठो और नहीं देखना तो निकलो ।
टीवी उस समय समाज जोड़ता था अब तोड़ता है । वक़्त बदला है यादें जिंदा ।
#सुजीत