एक अल्ल्हर बातें है जैसे,
सपने का पलना हो जैसे !
अठखेली हवाओं जैसी !
बावरी मन चंचल हो जैसी !
आशाओं की डोरी सी !
बातें करती पहेली सी,
एक तस्वीर ….
ख्वाबो में एक तस्वीर सी बनती,
हया धड़कन के पहलु में छुपती,
झुकी नजर में शर्माती हँसती,
नाजुक मन आँखों में सिमटी !
एक ख्वाब …
कभी इन्तेजार में सज जाते पल !
बिन बुलाये सता जाते हर पल !
कल देखा था उन चेहरों में गम का जो हलचल,
शिकन भी उठते रहे इन चेहरों में भी पल पल !
ना सच है अल्ल्हर बातों का,
ना श्वेत श्याम किसी रातों का,
ना डोर है इन हवाओँ में कहीं,
जो नूतन तान से बहते है,
अलसाती सी हवाएँ बनकर,
खिडकी पर चुपके से आकर,
कभी पुरवैया से गीत सुनाकर,
बेसुध मन में जो समाकर,
सखा बन बातें करते है !
जीवनमयी गीत में एक धुन को सजाकर,
अपनों का कभी अहसास कराकर,
रिश्तों की एक डोर थमाकर ..,
कभी हम उलझे, और कभी जो सुलझे !
ये अल्ल्हर बातें .. किसकी .. शायद कोई ना समझे !