विन्डो से मैक तक का सफर वंडरलैंड से !!

पूरी तरह याद है करीब डेढ़ दशक पहले का वो दिन जब स्कूल में कंप्यूटर की पहली कलास; ऊपर जाके ठीक लाइब्रेरी के बगल में शांत एकांत सा कमरा जिसपर लम्बा मजबूत ताला लटका “संगणक कक्ष” .. कृपया जूते उतारकर अंदर प्रवेश करे। अंदर जैसे विज्ञानं के अनूठे अविष्कार की प्रयोगशाला, एक कौतुहल और जिज्ञासा चरम पर ! पूरी तरह सुसज्जित महँगे कवर से ढँका कंप्यूटर .. पुराने जमाने में कंप्यूटर का रख रखाव सहज नहीं था .. वतानुकलित, धूल मिट्टी से बचाव काफी हिफाजत और शिक्षक की हिदायत के बीच रखा जाता था इसे !

काफी कौतुहल से भरा होता था कंप्यूटर कलास ; याद है डॉस की काली स्क्रीन पर कमांडों की छेड़ छाड़ ; फिर अगले वर्ष “बेसिक” पर १० ..२० .. ३० .. ४० .. के क्रम में प्रोग्राम का लिखना .. फिर “लोगो” का टर्टल जो हमारे इशारों पर चित्र बनाता था ! कुछ वर्षों की मेहनत के बाद देखने को मिला था विंडो स्क्रीन जिसमे माउस .. सिंगल क्लिक .. डबल क्लिक से सब संचालित था ! पेंट ब्रश .. पॉवरपॉइंट पर वो तस्वीरों और अपने नामों के साथ स्लाइड का घूमना .. और इस तरह विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम का सफर फिर छूटा नहीं .. स्कूल से ऑफिस तक अनवरत चलता ही रहा !

विंडो कंप्यूटर डेस्कटॉप से लैपटॉप एक अनूठा ही सफर है टेक संसार में ; याद है वो पेंटियम थ्री का वो पुराना कंप्यूटर कब डब्बा ; बार बार उसके पार्ट पुर्जे हिल जाते थे ! उसका ढक्क्न खोल के ही रखा था ; जब चाहा हाथ लगा दिया, हर इतवार छुट्टी का तो उस डब्बे की फॉर्मेटिकरण में बीत जाता था ! फिर इसी तरह राजधानी वंडरलैंड में रोजगार की शुरुवात विंडो कंप्यूटर से नाता गहरा होता गया ! पापा ने किसी छुट्टी में घर जाने पर कहा लैपटॉप ले लो ; जब अब पढ़ाई लिखाई सब इसी पर तो आगे बढ़ने के लिए यही जरुरी चीज हुई ! समझो किताबों की जगह इसने ले ली ! फिर अपना लैपटॉप अपने हाथ था ! आदत रही अपना मतलब अपना कोई साझेदारी नहीं ! अपना ब्राउज़र , सेटिंग, वॉलपेपर सब मेरे पसंद की चीजे अपने नियत जगह पर ! किसी के हाथों में कीबोर्ड के बटन को निर्ममता से पीटना जैसे चोट मुझे लग रही हो !

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फिर ये लैपटॉप तो जिंदगी का हिस्सा बन गया ; MCA के सारे सेमेस्टरों का असाइनमेंट, प्रोजेक्ट कितना साथ दिया इसने ! वो सुबह तक C , C ++ के प्रोग्रामों से अंतिम त्रुटी के हल न होने तक लड़ते रहना ; शायद जुझारू बना दिया था इसने मुझे; एक छोटे शहर से आया वाकिफ नहीं था दुनिया के कई रंगों से ; इंटरनेट और निरंतर सीखने की इच्छा ने एक अलग ही इन्सान को अपने अंदर बनते देखा ; एक अलग पहचान टेक सेवी होने की ! स्कूल के संगणक कक्ष में वो बैठा बच्चा विज्ञान की इस दुनिया में अपनी उड़ान भर रहा था !

स्कूल में घंटो कविता की किताबों में खोया रहने वाला मैं, लम्बे लम्बे भारी शब्दों को अपने निबंध में लिखने के लिए मिले कई प्रमाण पत्र; पता नहीं कहाँ खो गए थे रोजमर्रा की आपाधापी ने ; पर शब्दों का प्यार मरता नहीं ; आखिर लैपटॉप ने शब्दों से मेरा प्यार वापस कर दिया ; टूटे फूटे लरखराते शब्दों से शुरू अपना सफर शब्दों का जिंदगी के साथ चलता रहा; कितने जिंदगी के रंगों को समेट कर लाता और उकेड़ देता अपनी कविताओं में ; कुछ लोगों ने कवि कहके सम्बोधित किया ; पर बस जिंदगी का फलसफां लिखता रहा.. पल पल को जीता रहा और कुछ कुछ लिखता रहा ; विंडो के इस कृत्रिम आविष्कार ने मुझे इंसान बना दिया ; जो जिंदगी को एक नये आयाम से देखता, आधुनिक दुनिया से रूबरू होता समझता सीखता और आगे बढ़ता !

अपने लैपटॉप से एक नाता सा रहा ; जैसे वो संगी साथी हो कितने वर्षों का जो मुझे समझता आ रहा, गमगीन होता उसपर अपने गमों को व्यक्त किया, ये मेरे वंडरलैंड का ऐसा साथी जिसने हर हमेशा आगे बढ़ने की हिम्मत दी ; कुछ नया करने की नसीहत दी ! वो होली दिवाली की पुरानी तस्वीरें, घर की याद, दोस्तों का प्यार सब कैद रखा है इसमें !

विंडो कंप्यूटर के कई वर्षों के सफर के बाद . . मैकबुक किसी दूसरी दुनिया की यंत्र की तरह प्रतीत हुआ; एक ऊँगली की क्लिक, दो ऊँगली का जेस्चर, तीन ऊँगली से ड्रैग सेलेक्ट ; कुछ अलग सा सजा डेस्कटॉप अरे मेरा “माय कंप्यूटर” भी नहीं रहा ; एक प्रथम कक्षा के बच्चे की तरह सीखना शुरू किया ; जल्दी ही निपुणता को प्राप्त कर लूँगा ; भविष्य में कल कई चीजे इस विज्ञानं के मायानगरी में देखने को मिलेगी ! तब तक सीखते रहिये, आगे बढ़ते रहिये; मैं भी सीख रहा ! जय विज्ञानं !!

~ सुजीत ( डिजिटल दुनिया से )

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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