बातों का सिलसिला अब वैसा नहीं चलता,
लम्बी फेहरिस्त होती थी बातों की,
मैं पहले तो मैं पहले की तकरार,
अब रुक रुक कर कभी कभार मैं कुछ पूछता,
और ठहरे ठहरे से तुम भी कभी बोलते,
मुँह फेर के तुम भी रहते,
बेमन से मैं भी कुछ कह देता,
बाँकी के खाली हिस्सों में,
लम्बी सी चुप्पी छा जाती,
उस ख़ामोशी की खाई में,
तेरी तस्वीर सी बनती है,
जो कुछ कहती तो नहीं,
हाँ याद दिलाती है,
तुम भी कभी बहुत बोलते थे !
#SK