टीवी . . अख़बार. . रेडियो. . संसद. . रोड. . बाजार. . चौक. . चौराहा. . !!
देह . . दिमाग . .पेट . . सब जगह धर्म चढ़ गया है !! धर्म पोर्टेबल हो गया – व्यक्ति वस्तु स्थान के हिसाब से बदला जा सकता ! धर्म डॉल्बी डिजिटल साउंड हो गया – संसद में घंटो गले फाड़ चीखा जा सकता ! राजनेता, अध्यापक, लेखक, शिक्षक, कलाकार से लेके सबने अपने अपने रूप में धर्म को विचार, व्यव्हार, आवश्यकता, पेशा के अनुरूप परिभाषित कर दिया कुछ इस तरह …
हम सबने मिलके धर्म को क्या बना डाला कभी सोचा ?
धर्म खबर बन गया ;
धर्म अधर बन गया ;
दो पाटों में पिसता ;
अपनी धुरी पर घिसता ;
धर्म नजर बन गया ;
धर्म बेखबर बन गया ;
धर्म शक बन गया ;
धर्म बेशक बन गया ;
धर्म रंग बन गया ;
धर्म बेरंग बन गया ;
धर्म राग बन गया ;
धर्म बैराग बन गया ;
धर्म हानि बन गया ;
धर्म कहानी बन गया ;
धर्म जाप बन गया ;
धर्म प्रलाप बन गया ;
धर्म काल बन गया ;
धर्म जाल बन गया ;
धर्म संवाद बन गया ;
धर्म विवाद बन गया ;
धर्म राज बन गया ;
धर्म ताज बन गया ;
धर्म नारा बन गया ;
धर्म किनारा बन गया ;
धर्म हुंकार बन गया ;
धर्म पुकार बन गया ;
धर्म बाजार बन गया ;
धर्म औजार बन गया ;
धर्म अर्थ बन गया ;
धर्म व्यर्थ बन गया ;
आखिर हमने इस धर्म को क्या बना दिया …
वो अबोध बच्चा जिसे कुछ मन्त्रों से अब हिन्दू बना दिया गया; या वो आदिवासी जिसके गले में क्रॉस लटकाकर ईशाई ; या वो गरीब परिवार जिसके नाम में खान या मोह्हमद लगाकर उसे एक नए मजहब मसीहा से जोड़ दिया जाता ! क्या ये दिल से मन से परिवर्तन है ! और परिवर्तन भी तो किस चीज का ? मात्र कर्मकांड और नाम वेश-भूषा धर्म का आवरण हो सकते परिचय तो नहीं !!
वो गरीब किसान तंग आ चूका होगा ; उसे भी सबके तरह अपने पूर्वज से २ बीघा जमीन नहीं मिली खेती करने को ; अपने परिवार का पेट कैसे पालता ; उसे अपना धर्म मालूम था उससे उसने २ बीघा बेच दी ! और आप सब ने अपने भूख के लिए २ बीघा धर्म भी नहीं बेचने दिया उन गरीबों को ; भूख गरीबी ने कमर तोड़ दी थी क्या मंदिर जाता ; कोई निवाला हलक में नहीं जाता क्या देवों को भोग लगाता ; उसी धर्म के नाम से ही सही आप सब उनकी भूख मिटाने के लिए क्यों नहीं आगे आते ? लाखों करोड़ो का आयोजन हो जाता पर ; जुलुस विरोध शोर नारे पर कभी सुना वो आवाज की किस परिस्तिथि ने किसी को अपना धर्म छोड़ने के लिए मजबूर किया होगा !
अक्सर हम सुनते ही है – दक्षिण में गणपति मंदिर, साईं बाबा ट्रस्ट ; अजमेर शरीफ ; बनारस ; वैष्णो देवी मंदिर ! नजाने कितने मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे के फण्ड रोजाना लबालब होते जा रहे ! सच में अपने धर्म के रक्षक बनते तो उन मासूम , लाचार , बेबस लोगों के लिए आगे आइये की किसी को धर्म की दो बीघा जमीन ना बेचनी पड़े !
सामने रोते बच्चे को रोटी नहीं दे पाने की टिस; गरीबी में जीवन काटकर तिल तिल मरते परिवार; फुटपाथ पर गुजारते और ढंड में कांपते चेहरे ; रोज रात परिवार चलाने की चिंता में झुकते कंधे ;इनसे धर्म पूछते ? हक़ नहीं किसीको ! रोटी, भूख, तड़प, गरीबी का कोई धर्म नहीं !
बाँटिये कम्बल इस सर्द रातों में !
गरीब के मरते बच्चों को अस्पताल ले जाइए !
भूख से सूखे हलक में निवाला डालिये !
तब आप गर्व से अपने धर्म का नाम ले सकते !
उसके कर्म को परिवर्तित कीजये ; नहीं तो दो बीघा धर्म बिकता ही रहेगा !!
धर्म तो अपने कर्म और जीवन के बीच सामंजस्य लाने की व्यवस्था ही तो है ; सत्य, सौहार्द, प्रेम, इंसानियत, प्रकृति ये धर्म से ही तो निहित तो है !
स्वंय विचार कीजये !
– किसी घटना से संबंध नहीं (लेखक के अपने विचार )
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर, आज के सन्दर्भ में शत प्रतिशत सत्य
शुक्रिया ..
Acha laga aapka post. Bohot dharmik hain.