गाँव में ख्वाब पुरे होते नहीं,
शहरों में नींद कभी आते नहीं !
फोन इतने बड़े हाथों में आते नहीं,
बात दिलो तक अब जाते नहीं !
चुप से सुनते हरदम पुराने धुनों को,
अब कभी खुल के यूँ गुनगुनाते नहीं !
चलते फिरते पांवों के छालें दिखते नहीं,
अब घासों पर भी दो कदम चल पाते नहीं !
लंबी लंबी घने हरे पेड़ थे कितने,
अब गमलों में भी बोनसाई मुरझाते नहीं !
कभी फूसों छप्परों में रह जाते थे संजीदा,
ऊँचे दीवारों और छतों में भी बस पाते नहीं !
करते थे वादें कैसी कैसी लंबी,
फिर कभी लौट के वो आते नहीं !
कैसे खिलखिलाते थे नोक झोंक पर भी,
अब बीत जाती उत्सव सभी फिर भी मुस्कुराते नहीं !
रो जाते थे छोटी सी किसी बातों पर,
अब अंदर की बेचैनी कभी कुछ बताते नहीं !
घंटों बीत जाती थी कितनी बातों में तभी,
अब शब्दों के सहारें लेकर कुछ भी छुपाते नहीं !
Sujit ~ The Contrast of Life
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