दीवाली और छठ त्यौहार बिहार की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करते । नेताओं से लेके न्यूज चैनल तक ने खूब ब्रांडिंग भी की गाने बजाए, फेसबुक व्हाट्सएप्प ऑडियो वीडियो सब जगह इस पर्व में बिहार ही बिहार दिखता ।
पर हर त्यौहार का वर्ष एक टीस लेके आता अपनों से हर वर्ष नहीं मिलने का किसी को छुट्टी नहीं मिलती, किसकी को टिकट नहीं, आखिर २-४ दिन आने जाने में कोई कैसे १५०० -२००० किलोमीटर से आये ! हर घर में कोई न कोई कहीं न कहीं जीविका के लिए विस्थापित है, घर में बुजुर्ग बाट जोहते, अकेले बेमन से त्योहारों में अपने घरों में जब वो दिवाली के दीप ले सीढ़ियों पर चढ़ते उन्हें अपने परिजनों की याद आती, बिना संतानों के कैसी दिवाली, बड़े बड़े घर झूलते झालर ये उत्सव सब अधूरा लगता ; कोई भाई से नहीं मिल पाता, कोई माँ अपने बेटे से नहीं मिल पाती ! गाँव शहर सब जगह इन त्योहारों पर एक ही बात सब पूछते “बाबू नहीं आया क्या, इस बार कोई नहीं आया क्या ”
छठ दिवाली में भगवान से भी यहीं अब कामना होती अब और विस्थापन नहीं, कुछ पैसे कम सहीं, कार छोटी सही, बुलेट नहीं तो 100 Cc भी चलेगा पर अपनों का प्यार चाहिए, घर से दूर अपनों से दूर ये कैसा अभिशाप है इस प्रदेश को !
कितनी सरकारें आती, कितने दशक और न उद्योग न धंधे ; कोई विस्थापन की बात नहीं करता ! इस प्रदेश को अब Reverse Migration की जरुरत है !ये भागते भागते कहाँ पहुंचेंगे ! अपनी माटी की ओर लौटना होगा हमें !
छठ का ये वीडियो तो देखा ही होगा – #बिहार