किसी ख़ामोशी को लौटते देखा है ;
वैसे ही लिबास में ; पुराने लिबास में ।
हाँ सजे संवरे .. बिना किसी आहट के ;
फिर नजरों के सामने पुनः ।
हाँ महसूस कर सकते हो तो,
तो मौजूदगी महसूस करो ;
रात की धुंध में भी सब पास,
महसूस होगी आहटें वैसी ही ।
अगर वहम टूटता है तो टूटने दो ;
बिखरने दो हर वहम को तुम ;
यहाँ कोई कुछ भी शास्वत नहीं …
आस रखते हो लौटने की तो ;
छूटे हर रिश्तों की गिरह टूटती है ।
तुम मानों कोई छूटा ही नही ;
या लगता तुम थे यहीं कहीं ।
बस एक वक़्त है ..
जो बदलता बढ़ता ,
बीत जाता हर वक़्त,
वक़्त के बीतने तक ;
लम्हों के गुजरने तक ;
तुम और मैं वैसे ही ठहरते !
ऐसा नहीं भी तो कुछ भी नहीं,
तेरे लौटने पर तो फिर कुछ पल,
सब यथावत वक़्त से परे ;
मैं शिकन थाम लेता तेरे चेहरें की ;
तुम मेरे ख़ामोशी को समझ लेते ;
अब क्या गिरहें रह जाती रिश्तों की ;
बिखेर के शिकवे सारे,
कुछ पल आ जाये हँसी के !
चेहरा मेरा या तुम्हारा सब मिटता हुआ,
बस सब सिमट कर आ गया है,
अतीत से अब तक …
पिघल ही गयी हर शक्ल ,
कुछ मुझमें कुछ तुझमें कहीं ।
#SK
बस एक वक़्त है ..
जो बदलता बढ़ता ,
बीत जाता हर वक़्त,
वक़्त के बीतने तक ;
लम्हों के गुजरने तक ;
तुम और मैं वैसे ही ठहरते !
एकदम सुन्दर शब्द