हर रात.. सिरहाने में पड़े पड़े सोता,
कितने सालों का किस्सा है ये डायरी !
उसके कोने में ताजगी सी नहीं है,
कोनों से मुड गये है पुराने होकर !
कबतक कितना गिरह संभालेंगे ये,
कोई कोई पन्ना पढ़ा नहीं जाता,
उधढ़ सी गयी है इसी लिखावटें,
कुछ आँसू गिरे होंगे स्याही फ़ैल गयी !
हर लम्हों को कैद कर लेता शब्दों से,
शायद लम्हों को रास नहीं भी आती भी ये बंदिशें !
अपनी कैद की सजाये देते है मुझे,
जब भी पलटता मैं इसके पन्ने !
चीख सी आती है कुछ पुराने दिनों के पन्ने,
अनायास जो हवा में पलट जाते !
लौट जाता हूँ कुछ पल के लिये,
उन दिनों में शब्दों में जब बांधा था इसे …
अब बस सारे लम्हों को आजाद कर दूँगा,
बिखेर कर खोल दूँगा हर पन्ने ..
कहीं दूर छोर आऊँगा डायरी के हर पन्ने,
अब रिहाई चाहते मेरे शब्द इस कैद से !!
#SK Diary …..