#MUSTWATCH
जब इस दौर में मन थक रहा हो, आशंका चिंता घेर रही हो ! जीवन का ठहराव अब मष्तिष्क को जरत्व करने लगा हो ; अपनों से दुरी में विचलित मन जब धैर्य खो रहा हो तो किशोर दा का एक गीत आपको उर्जा देगा, आपको दिल के करीब लगेगा ! थोड़ी आँखों में नमी भी लायेगा |
आप सोचिये पुरे विश्व के बारे में सुरक्षाकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मी, प्रशासन एवं तमाम लोग जो दिन रात इस महामारी से लड़ने में लगे है | हमें हिम्मत नहीं हारना है अपने उम्मीद को जिन्दा रखना है की मानवता एक दिन विजय होगी हर त्रासदी एक दिन ढलेगी और फिर मुस्कान फैलेगी इस दुनिया में !
Title: कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे
कभी सुख कभी दुख, यही ज़िंदगी हैं
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी हैं
नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे
भले तेज कितना, हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में तू रख ये भरोसा
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे
कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है
लहर प्यार की जो कहीं उठ रही है
उसे एक दिन तो किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे