बहुत ही धुंध हो आई इस बरस ;
कई रिश्ते धुँधले से हो आये !
बेरुखी भर आयी थी जस्बातों में ;
इसको कभी ना वो समझ ही पाये !
कुछ ऐसी लब्जो की बेबसी थी ;
पसरे ही रह गए खामोशी के साये !
मुश्किल है अनंत संवादों को मिटाना ;
अनगिनत बार मन में लौट के आये !
ना साथ ना सिलसिला ही बनता;
अब हाथ छूटा तो बन बैठे पराये !
बहुत ही धुंध हो आई इस बरस ;
अब वो चेहरे भी धुँधले से हो आये !
#SK … Mist of Winter !!
photo credit: Christophe JACROT via photopin cc
मुश्किल है अनंत संवादों को मिटाना ;
अनगिनत बार मन में लौट के आये !
ना साथ ना सिलसिला ही बनता;
अब हाथ छूटा तो बन बैठे पराये !
शानदार अशआर सुजीत जी
शुक्रिया !!