बिखरा बिखरा सा कुछ दिनों से,
बड़ी मुश्किलों से मिलता था ..
यादों का कुछ टुकड़ा !
कागजों पर लिखी कई नज्में,
बिखरे दरख्तों पर दब सी गयी,
पुराने पत्तों का ढेर जम सा गया था !
सब बिखरा बिखरा सा इर्दगिर्द,
धूलों फाँकों में दबी हसरत सी कई,
हाथों को नहीं फिराया ..
मिट जाती कहीं उँगलियों से,
खीचीं तस्वीरें कई आधी अधूरी !
यही वो जगह जहाँ रोज सोचता हूँ तुम्हें;
लिखता हूँ रातों में किस्से सुकूं के !
सोचा किसी दिन आओगे,
तो संवर जायेगी हर बिखरी चीजें,
आज कुछ कोशिश की ..
करीनो से सजा हर सामन को रखा;
हाँ मिट गयी पुरानी लकीरें यादों वाली !
कब तक यूँ रहता यहाँ ऐसा ही,
सजा लिया घरोंदा अपने हाथों से ही !
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