फिर देर से ..
दिन ही नहीं रात गुमशुदा सा लगता है ;
ये जिंदगी की कैसी किश्तें अदा कर रहे ;
वो जो मायूस सा सहयात्री है अजनबी ही है ;
पर उससे एक हमदर्दी सी है ;
ये आखिरी गाड़ी स्टेशन पर मालूम सी होती ;
लटकते हैंडल पर झुका बदन ;
रोज देर लौटते लौटते ;
जिंदगी को पीछे छोड़ता हुआ रोज ;
सिलसिला ही तो है जो थमता ही नहीं ;
बड़ी बेबस है आँखें थक के बोझिल ;
शाम का रंग कब से नहीं देखा है ;
देर रात घर के पास दूर तक दिखती ;
लम्बी परी सड़क वैसे ही हूबहू सी लगती ;
स्कूल से छुट्टी पर जो घर के पास वो सुनसान गली थी ;
जैसे तेज दौर जाऊं उस खाली सड़कों पर ;
बस्ते को इधर उधर घुमाते हुए ;
पैरों को इधर उधर पटकते हुए ;
जैसे कोई नहीं देख रहा हो ;
ये रोजमर्रा मेरा ..
संगी साथी सब लौट जाते ;
आज लौटा फिर देर से .. !!
Late again when I get home .. #SK