मैं अब कैसे शिकायत भी करू तुमसे,
तुम खफा हो के कुछ और दूर चले जाओगे !
ये फासले या वक्त की क्या साजिशे थी,
कुछ खोने का अहसास अब पनपने लगा था !
बहुत सब्र से देखते तेरी खामोशी,
कोई शिकायत नहीं जहन में !
एक दिन बेसब्री टूटेगी मेरी,
फिर शायद सदियों तक बुत बन जाये हम !
शायद एक दफा तुम समझा देते इसे,
मेरे कदम मुझे दूर जाने ही नहीं देते !
इतने पुकारों पर जो ना बोला कुछ,
जिद तोड़ समझ क्योँ नहीं लेता मेरा मन !
कभी महसूस कर लेना मेरी आहट अपने आस पास,
कभी हम बिन आवाज किये दरवाजे से लौट जाते है !
#Sujit [In Poetry]