मैं अपनी हर रीत निभा रहा ..
जिंदगी तू भी अब साथ दे थोड़ा !
मैं हर सुबह चहक उठता;
पर तू शाम तलक मायूस कर देता !
चलो छोड़ चला लड़कपन,
रूठने मनाने का !
चलो दूर हुआ बचपन,
हर पल मुस्कुराने का !
चलो गिरवी रखा रात के ख्वाबों को,
कुछ तो अब तू भी लौटा जरा !
सोच लिया छोड़ने की हर चीजे,
कुछ पाने की राह दिखा जरा !
वक्त सिमट कर दोहमत लगा रहा,
जिंदगी तू भी अब तो साथ दे थोड़ा !
:- सुजीत
वाह… उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति…बहुत बहुत बधाई…
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
बहुत खूब
शुक्रिया प्रसन्नवदन जी !!
शुक्रिया राकेश जी !!