क्या आसां है उन चिड़ियों को कह देना,
उस बरामदे तुम ना चहचहाना अब;
अब अजनबी सा वो मकान हो गया है;
सुबह को भी बनाना मुश्किल ही है,
चेहरों पर उभरती हुई रेखाओं की तरह !!
चेहरें पर हँसी का क्या खामोश ही है,
उसने तो देखी ही है उलझने कई;
इन मायूसी ने भी भी कई शाम बिताए है,
पाषाण सा हृदय अब नजरअंदाज करता कई बातें,
जिंदादिल हो मिलता है वो शहर के लोगों से !
सजा और गुनाह का मतलब पाट चुका अब,
छोड़ जाता है कई ख्वाबों को रातों के हवाले,
ना बातें करता ना पूछता किस्सा उसका कोई,
कुछ तो खोया ही होगा इन अँधेरों में उसका भी,
जिंदगी पर अक्सर बातें किया करता है वो !
#SK