आजकल का मौसम, दिन भर जलती हुई पछिया हवा, निर्जन सड़के, चिलचिलाती धुप, बेजार मन ! एक कविता इसी संदर्भ में …
सड़कों पर रेगिस्तान उतर आया है,
पछिया बयार का तूफ़ान उतर आया है !
सूखे पत्तों से,
भर गई है गलियाँ और मुंडेरे,
धूलों का आसमान उतर आया है !
परदे आपस में उलझ गए है ऐसे,
जैसे किसी ने गाँठे बांध दी हो,
निर्जन राह और जलता आसमान,
तपती मौसम का पैगाम उतर आया है !
सुख गए है कूप और तालाब,
शुष्क धरा पर शैतान उतर आया है !
कैसे चुपचाप सी खामोश है दुपहरी,
उजड़े मन का कोई मेहमान उतर आया है !
#SK
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bahot hi badhiya kavita, keep it up!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Dhanywad utsahvrdhan ke liye !
Thank You …
Thanks a lot !!
एक अदद अंदाज़ में लिखे गए है ये शब्द सारे,
लगता है मरुस्थल में कोई नई बयार लाया है.
– अमित शुक्ला
धन्यवाद !!
बस सूखे और ग्रीष्म ऋतू के इर्द गिर्द कुछ विचार है !