मेरे शहर के ऊपर,
रोज कोई कैनवास लगाता है,
रोज सोचता हूँ देखूँगा उसकी सूरत,
वो रोज कुछ न कुछ बना के चुपके से चला जाता,
बड़ी बड़ी रंगों की शीशी और बड़े बड़े ब्रशों को लाता होगा अपने साथ,
आखिर इतना बड़ा आसमां जो रंगता है वो,
कोई कहता है खुदा ईश्वर है वो,
मुझे तो मेरे जैसा कोई इंसान लगता है,
खुश हो के नीले रंगों में रंग देता,
कभी गम में काले भूरे गुस्से से तस्वीर बनाता,
कभी सोच में कहीं खो जाता होगा तो,
बिना रंगों में डुबोये ही ब्रश चलाता होगा,
मैंने कई दफा बिना रंगों के उजला आसमां देखा है,
पता नहीं सुबह शाम कभी गुस्से में रहता होगा वो,
अक्सर लाल रंग बिखरा देखता हूँ कैनवास पर,
नादानियाँ भी पकड़ी जाती उसकी,
सफ़ेद रुई के फाहों जैसे कभी हाथी, जिराफ, घोड़ा, ऊँट भी बनाता है बादलों में वो ।
मैं अक्सर सोचता हूँ,
मेरे शहर के ऊपर ये कैनवास कौन लगाता है ??
#Sujit
बेहतरीन कविता
धन्यवाद मित्र !!