वो रिश्ते जो अबूझ थे अच्छे थे,
ठूठ पेड़ की तरह,
न कोई हलचल थी,
न कोई हवाएँ
और न ही बढ़ते वो किसी की तरफ,
बिना पहचान के खड़े रहते आमने सामने,
ख़ामोशी से एक अदब का रिश्ता निभाते !
ये हरियाली लताओं सा रिश्ता,
लिपटते मिलते,
फिर बढ़ जाते गले की ओर,
घुटन की फांस बनके,
फिर बड़े बेअदब से हो जाते ये रिश्ते !
#SK