से आगे का किस्सा ?
जहाँ रात को रोक के कल,
हम और तुम कहीं चले गए थे,
उस चाँद को गवाही बनाके,
की फिर इसी वक़्त रोज,
यहीं आ बैठेंगे और पूछेंगे तुमसे,
और तब ?
थोड़ी देर तुम सोचो,
थोड़ी देर मैं भी कुछ,
फिर तुम भी कुछ कहना,
फिर मैं भी सब कुछ कहता,
जब कुछ कहने का मन नहीं होता,
तुम्हें ही सोचते हुए तुमसे कह लेता,
और तब ?
वो चाँद भी ऊब जाता होगा कभी कभी,
रोज वहीँ से वही बात सुनकर,
चाँद भी तो रोज रात संग ऐसे ही बातें करता होगा,
शायद वो भी पूछता होगा “और तब ?” !
— #Sujit Poetry