स्नेह भी कभी मरता क्या,
फासलों से ये खामोश पड़ जाता,
कुछ बातों से आँखों में तर हो जाता !
बेजान बेजार ही रह ये जाता मन में,
सोचता फिक्र करता वक्त बेवक्त,
स्नेह भी कभी मरता क्या !
कोशिश करता अलग थलग रहने की,
फिर निश्छल आँखों को मायूस कर लौट आता;
स्नेह भी कभी मरता क्या !
अपने स्नेह के बदले ये कुछ स्नेह ही चाहता,
कितने ही शिकायतों से निष्प्राण बनता हुआ;
स्नेह भी कभी मरता क्या !
मौन सफर पर पथिकों को अलविदा कहता हुआ;
धीमी धीमी सी हँसी चुपचाप सा बिखेरता;
इस सफर में छुटे हर साथी एक स्नेह रखना !
स्नेह कभी नहीं मरता .. कभी नहीं !!
#Sujit