अम्बर की ये तीखी किरणे,
धरा लगी ऊष्मा को सहने,
नदियाँ लगी उथले हो बहने !
शुष्क जमीं सब सूखा झरना,
लगा पतझर में पत्तों का गिरना !
सड़क सुनी, गलियाँ भी खाली,
इतवारी दिन लगती है सवाली !
धुल हवा के भरे थपेरे,
मन बेचैन जैसे हुए सवेरे !
तब लंबी छुट्टी गाँव बुलाती,
याद बचपन की ऐसे वो आती !
बड़े खंभों ने वृक्षों को लिला,
बड़ा तप गया ये शहरी टीला !
ग्रीष्म काल अब हमे नहीं है भाती !
Thoughts in Summer : SK