** एक टीवी साक्षात्कार में शारदा सिन्हा से कुछ पंक्तियाँ, इस गीत व कविता को सुना, और सचमुच भाव से ओत प्रोत कर्णप्रिय रचना ! माटी की खुशबू और संगीत जैसे परम्परा का वहन करती !
घूँघट घूँघट नैना नाचे, पनघट पनघट छैया रे,
लहर लहर हर नैया नाचे, नैया में खेवइया रे।
बीच गगन में बदरा नाचे बरसे मारे प्यार के,
पानी पी के धरती नाचे बिना किसी आधार के ।
डूबा सूर्य निकल आया तो मरने वाला कौन है,
रंग बिरंगे परिवर्तन से डरने वाला कौन है !
नाचू जैसे मुझे नचाते मेरे वेणु बजाया रे !
लहर लहर हर नैया नाचे, नैया में खेवइया रे।
(गोपाल सिंह नेपाली की काव्य रचना को जीवंत करती शारदा सिन्हा के स्वर !)