कुछ खोया सा अतीत हो रहा !
कुछ साँसे चल रही नब्ज में,
कुछ धड़कन भी मंद हो रहा !
भीड़ परिदृश्य से भरे अधर में,
किस शोर में अब खड़े हो रहा !
ना दंभ अभिमान रही बातों में,
कंठ स्वर सब निबल हो रहा !
था मन खोया कुछ अधर आस में,
अब सब सपनों से भी परे हो रहा,
सिमटा जीवन अनन्त होड़ में,
क्षण प्रतिक्षण व्यतीत हो रहा,
कुछ खोया सा अतीत हो रहा !
सुजीत (SK)