भागती ऊहापोह जिन्दगी में
क्या खोने पाने की चाहत है,
बस उबते थकते मन को बहलाते
चले जा रहे एक अनजान सफ़र पर !
क्या पाउगा या क्या खो दूगा,
गुमनाम चाहत है एक हसरत है,
सपनो की बादल की एक बूंद ही सही
बस चले जा रहे एक अंजन सफ़र पर
रचना : सुजीत कुमार लक्की
3 thoughts on “एक अनजान सफ़र”
सुलभ [Sulabh]
(August 19, 2009 - 9:13 am)क्या पाउगा या क्या खो दूगा,
गुमनाम चाहत है एक हसरत है.
अच्छा लगा. आगे लिखते रहें.
संजय भास्कर
(May 15, 2010 - 7:20 am)हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
Anonymous
(November 11, 2012 - 2:01 pm)good
Comments are closed.