रास्ते भले ही बदले हमने पर हम भी किसी मंजिल के राही है ,
उबर खाबर पगडंडियो पर जरुर फिसले हमारे पावं
पर चलने की ललक आज भी बाकी है !
वक़्त की भागदौर में रुकता गया कारवां
पर सपनो की भवर से निकलना आज भी बाकी है !
रुकी थकी यादों में डूबा जरुर में पर उन पर
लहरोंकाउठानाआजभीबाकीहै !
पर सपनो की भवर से निकलना आज भी बाकी है !
रुकी थकी यादों में डूबा जरुर में पर उन पर
लहरोंकाउठानाआजभीबाकीहै !
थके थके से हो कदम मेरे लगते
पर मन में कसक अभी बाकी है … बाकी है ! ! !
पर मन में कसक अभी बाकी है … बाकी है ! ! !
रचना : सुजीत कुमार लक्की
अभी कुछ बाकी है…
ये सफ़र अपना सा लगा.
really its arue fact yar
kafi sunder rachna ..