प्रेम के विस्तृत स्वरुप को कविता की शक्ल देना कितना मुश्किल है, प्रेम की अभिव्यक्ति जितनी भी शब्दों में की जाए वो अधूरी सी छुट जाती ; तो प्रेम को कवि कविता के रूप में प्रेषित क्यों नहीं कर पाता ……
प्रेम संवाद सा था जब फासले कम थे,
अब फासलों पर ये मौन अभिव्यक्ति है,
अवर्णनीय है ये प्रखर तब था या अब है ?
यथोचित नहीं की इसका शोर हो !
कुछ कविताओं में कोशिश की इसे,
तुम तक पहुँचाया जा सके
इतना सहज तो नहीं था प्रेम को समेट पाना,
बीच में ख़ामोशी के पल वाले शब्द रुक जाते थे,
और वो अधूरी छोड़ जाती थी पंक्तियाँ,
तो तुम्हारी हँसी वाली शब्द इतनी बड़बोली,
मिसरे को तोड़ कर आगे दौड़ जाती,
कभी मैं रुक कर जब कुछ सोचता था,
वो यादें तितलियों सी सामने से उड़ जाती !
प्रेम की इस अधूरी पड़ी कविता में,
कुछ बेवक्त के पूर्णविराम है लगे,
कुछ रिक्त स्थान भी है छुटे पड़े,
कुछ को बोझिल बातों से भरा गया है,
वर्तनी मात्रा सब बेबस से है,
इस प्रेम की अभिव्यक्ति में !
#Sujit Kumar