किस रंग तुझे ढूँढू ,
कौन सा रंग लगाऊँ !
जिस रंग सखा तुम खोये ;
उस रंग को कैसे मिटाऊँ !
तू जो फिर लौटे तो ;
हर रंग में मैं रँग ही जाऊं !
तुझ बिन कहीं चैन नहीं था ;
तुम बिन बेरंग पल ही बिताऊँ !
मौन रंग में कभी मैं चाहूँ ;
फिर शब्दों के रंग सजाऊँ !
विगत स्मृति के चिन्हों से ;
यादों के रंग भर के लाऊँ !
मैंने तो हर रंग उकेरे ;
तुम बस श्वेत श्याम ले आये !
कुछ और रंग तुम भी लाते ;
थे आस जो मेरे मन में समायें !
मेरे नजरों ने थे हर रंग समेटे ;
अब क्यों सब बेरंग नजर से आये !
सुर्ख़ रंग हो वहाँ भी हरदम ;
यहाँ भी रंग रंग मैं तर हो जाऊँ !
सुबह संग कभी शाम रंग ;
मैं तो जीवन के चित्र बनाऊँ !
~ सुजीत