हम जब किसी दूसरे शहर में जाते और वहाँ रहने लगते, वहाँ की गलियाँ, वहाँ की रातें, मिलते जुलते लोग, अजनबी रास्तों के साथी और बीता वक़्त एक यादों का समंदर बना देता हमारे अंदर और जब उसको छोड़ जातें वो यादों का शहर हमारे अंदर ही रह जाता इसी भाव से एक कविता !
बदलते रहना शहरों को
यायावर से जीने वाले
क्या याद रहता होगा उन्हें
किसी शहर में बितायी शामें
कितनी दफा कितने बरस
वो मंडी वो राशन छोटा सा ढाबा ।
ऊँघती मलती नींद से भरी आँखों का इतवार,
क्या याद रहता होगा उन्हें,
कभी कभी खिड़की से चांद को देखना
और सुनना संगीत तकिये पर पड़े पड़े,
चुनना भीड़ में से दो चार चेहरे और कहना उनको संगी
बांटना उनसे किस्से नए पुराने
और करना सुनी सड़कों पर आवारगी,
पूछना प्रेयसी के किस्से हँस हँस कर
फिर संजीदा हो कभी
करना जीवन की बड़ी बड़ी बातें,
अलविदा कहते हुए यादों के पहाड़ को,
कहाँ रख देते है ये यायावर लोग,
शहर की गलियों को धोखे में रख
किसी रात नजरें चुरा के ;
कहीं दूर किसी और शहर की ओर निकल जाते ये लोग ।
Poet : Sujit Kr.