पुराने बटुए में कुछ कागजों के बीच,
कुछ महफूज़ रखा है हमने यादों को !
अनेकों आधे अधूरे लम्हों को,
थोरा थोरा जिक्र करके रखा है हमने !
अनेकों छोटे छोटे कागजों के टुकड़े है,
मैं तलाश रहा वो उस दिन का खोया सा किस्सा,
भीड़ ज्यादा थी हर तरफ लोगों की रास्तों पर,
किसी तरह बचा के मैंने रखा तुम्हारें यादों को,
में ढूंड रहा वो आधा सा पन्ना !
उड़ेल रखा है मैंने सारे पुराने परे यादों को,
कुछ मुड़े पड़े कागजों पर गिरह सी लिपट गयी है,
डरता हूँ खोलते हुए बिखर जाएँगे वो,
कसक रह जाती है अंदर उन अधूरे नज्मों को,
कुछ इक नाम दे देते जो छुट गया है कब से,
शब्द देकर उन्हें हम पन्नों से बाहर ला पाते,
पुराने बटुए में कुछ कागजों के बीच,
जिन्हें थोरा थोरा जिक्र करके रखा है हमने !