एक हतप्रभ करने वाला खबर था, किसी पिता को बुखार में तपते बच्चे को हाथ में लिए बड़े बड़े अस्पताल से लौटा दिया जाता, बच्चे की मौत माँ बाप के जीने की उम्मीदों को तोड़ देती और वो खुदखुशी कर लेते ! ये एक शहर की खबर मात्र बन गुम हो सकती लेकिन मानवता के लिए कलंक, की हम ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं और विलासिता की होड़ में कैसी दुनिया बनाना चाहते ?
इसी संदर्भ पर कुछ महसूस हुआ .. एक कविता
ख़ुदकुशी
खुद की ख़ुशी जब छीन गयी,
अब कुछ भी इस जहाँ में नहीं था,
तो बस अब क्या करता,
कर ली ख़ुदकुशी !
इबादत भी की हमने,
सजदे में भी झुका,
मिन्नतें भी खूब की,
दुआ और दवा भी,
अब क्या करता मैं,
कर ली ख़ुदकुशी !
भागा भागा में पहुँचा वहाँ,
जो आसरा था मेरा,
सुना था सब कहते थे,
भगवान का दूसरा बसेरा,
उम्मीद भरी नजर से देखा,
आंसुओं को रोक कर देखा,
हाथों में तप रहा था वो मेरे,
मैं भी तो जल ही रहा था,
लौटा दिया गया मैं वहाँ से,
अब क्या करता मैं,
कर ली ख़ुदकुशी !
दम तोड़ चूका था वो,
मेरे आँखों में ही सो गया था वो,
अब फरियाद को लब्ज नहीं,
न ही किसी सिफारिश की जरुरत,
न अब किसी से गुजारिश ही करनी,
हो सके तो किसी को फिर न लौटाना,
जो था बिखर ही गया,
हिम्मत नहीं जुटा सका सहेजने की,
मैं अब क्या करता,
बस कर ली ख़ुदकुशी !
#Sujit
5 thoughts on “ख़ुदकुशी”
Kundan Sharma
(September 19, 2015 - 6:45 pm)अत्यन्त हृदयस्पर्शी….पढ़कर आंखें भी नम हुईं।
Sapna
(June 8, 2016 - 7:15 am)quite touchy
Sapna
(June 8, 2016 - 7:25 am)Quite touchy
Sujit Kumar Lucky
(June 9, 2016 - 4:27 pm)Thanks 🙂
Sujit Kumar Lucky
(June 9, 2016 - 4:27 pm)Thanks 🙂
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