प्रकृति को महसूस करें तो कितने ही जीवन रंग इसमें छुपे है ; मानसून की बारिश रोज ही रुक रुक के होती, एक लम्बी उमस के दिनों के बाद जब बारिश की फुहार मन को तर करती, खिड़कियों से घंटों बारिश से भीगे सड़कों, पेड़ पौधों, पक्षी, घर घरोंदा आँगन सब को देखते देखते कितने भाव आते ! बारिश की बूंदों में विरह है, तृप्ति है, कौतुहल है, प्यार है, एक आवाज भी है तो ख़ामोशी भी है, उदासी भी है, शीतलता है, वेग भी है, मधुरता है, राग है, संगीत की धुन है शायद कवि के लिए भी पूर्ण व्याख्या संभव न हो ! बस बूंदों को बरसते देखिये और महसूस करिये इसकी खूबसूरती को ! एक कविता इसी बारिश के कुछ पलों को शब्दों में कैद करते हुए …
मुंडेरों से टपकती बूंदे कुछ कह रही,
गा रही वो जैसे गीत प्रेम का कोई,
झूल रही हो झूला आपस में मिल के ।
दो गोरैया आधी भींग कर काँपती हुई,
जा लिपटी है माँ की गोद में सहमी हुई,
फिर देखती है तिरछी नजरों से बादलों को ।
खिड़की की हर काँचों से लिपटकर,
बारिश की बूंदों का अजब सा कौतुहल है,
छूती फिसलती चूमती फिर गिर जाती ।
घन्टों सड़क की ओर देखती माँ,
हँस भी पड़ी थोड़ा आँखें दिखाती,
स्कूल से लौटते भींगा आया है वो बारिश में ।
सब हरी नई पत्तियाँ सज गयी है,
खिल गयी अब जो थी धुप में कुम्हला के,
गुनगुना रही हो सब बारिश में नहा के ।
भीगीं गली सुना पड़ा ठिठका हुआ दिन,
अब है सब फुहारों के संग मन को बहला के,
उमस को हटा लौटी है फिर बरखा जग में !
याद आया बचपन जब दिखा कागज़ की नाव,
कुछ कहती ये बारिश बूंदें बादल धुप और छाँव,
वर्षा है नवजीवन जैसे लौटा कोई परदेसी अपने गाँव !
:- Sujit
thank you sir for sharing this wonderful poem.
ur welcome !!