कुछ दिन जब तुम नहीं बोलते,
कुछ दिनों की चुप्पी होती,
फिर बोलने लगती हर चीजें
तुम्हारी तरह ।
सुबह सुबह खिड़की के पर्दो से झाँकती है धुप,
तुम्हारी शक्ल लेकर,
कमरे की वो दीवार,
जिसपे बड़ा सा कैनवास लगाया था,
बदल के हो जाती है,
उसकी सारी तसवीरें तेरे चेहरे जैसी ।
कभी गुजरता हूँ आइने के सामने से तो,
कंधे के बगल में तेरी परछाई खड़ी नजर आती ।
कुछ दिनों की आँख मिचौली ठीक थी,
आओ फिर बातें करते हैं
सब चीजों को वापस कर दे शक्ल उसकी,
जो तुम्हारी तरह हो गयी थी ।
#SK
1 thought on “कुछ दिन जब …”
gyanipandit
(November 10, 2016 - 10:59 am)लाजवाब कविता
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