अब जो भी यादें है !
धुँधला धुँधला तो नहीं,
क्षणिक स्मरण होता शब्दों से,
और पर जाती फिर धुल की,
अनगिनत परते उनपर !
शिकायतें भी उभर जाती,
कुछ नजरों में विस्मृत भी,
क्या जान पाए वो हमें ,
या कितना बतला पायें हम !
सवाल पर विराम सा आ टिकता,
कितना कठिन, या कितना भीड़ भरा,
अब हर रास्तों पर कुछ ऐसा ही लगता,
चलो सफर कर बस उस मोड़ तक,
फिर सुकून में उस पथ से बतायें,
मेरे यादों में क्या क्या बसता ..!
न मोड़ न कोई रस्ता …
बंजर हुए यादों पर,
मेरा मन भी मुझ पर ही हँसता !