भला उस गली में क्या खुदा बसेगा ;
जहाँ सब हाथ रंगे हो खूनों से !
मिट्टी भी रंगीन हो गयी ;
सबके काले करतूतों से !
जब रात चीखती धरी रह गयी ;
तब ख़ामोशी निकली कोनों से !
सना रक्त सा तेरा हाथ हुआ ;
अब इंसान गया तेरे सीने से !
साँसें किसकी छूटी तू क्या गिनता ;
तू मर गया अपनी सांसों को लेने से !
खुद की ही तूं लाश ढो रहा,
अब लतपथ हो पसीने से !
#Sujit (वर्तमान परिदृश्य से जुड़ी एक रचना )
Your poem is very fine .i most like.
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आपकी भावनायें एकदम नि:शब्द कर गयीं
शुक्रिया !!