अलविदा अधुरा ना होता वो,
जो तेरे जिक्र में मैं ना नजर आता ।
फिर ना फिक्र उमड़ती मुझमें,
जो तु अधुरा ना नजर आता ।
बेफिक्र ही गुजर जाता दूर मैं,
जो रास्तों में तू ना नजर आता ।
मुस्कुरा कर रह लेता अपने गमों में,
जो तेरे आँखों में कोई गम ना नजर आता ।
तेरी ख़ामोशी ही मेरी नाराजगी रह गयी हमेशा,
मैं देखता रहा और तुझे ही कुछ नजर ना आता ।
अगर कह दिया अलविदा तो ये मुक्कमल होता,
ना दूर गये तुम कहीं और ना ही पास कुछ नजर आता ।
ये आखिरी अलविदा भी अधुरा ही रह गया,
बिखरा सिमटा मैं ऐसा ही बस अब नजर आता ।
सुजीत
तेरी ख़ामोशी ही मेरी नाराजगी रह गयी हमेशा,
मैं देखता रहा और तुझे ही कुछ नजर ना आता ।
अगर कह दिया अलविदा तो ये मुक्कमल होता,
ना दूर गये तुम कहीं और ना ही पास कुछ नजर आता ।
बहुत सुन्दर