बीते रात के ख्वाब को एक दिन,
मंदिर के सीढियों पर देखा ।
माथे पर कुमकुम का टीका,
थाल अरहुल थे सब सजे ।
बीते रात के ख्वाब को,
सीढियों पर धीरे धीरे जाते,
ख्वाब को ओझल होते देखा ।
मेरा अर्चन ही क्या था,
वहाँ जैसे निश्छल सादगी को देखा ।
तम था मिट गया हो जैसे,
सृजन था जीवन का हो जैसे,
ख्वाबों को सिमटते देखा,
क्षितिज पर किरणों को जैसे,
ख्वाबों को ..
मंदिर के सीढियों पर देखा ।
About This Poetry : This Poem is amplification of spiritual findings, humanity! Define the innocence and our helping heart which spread love, temple is a divine place where our heart & mind connects to our soul and seek questions, pray for life and some imaginary form of dreams. Above sketches holds itself some voices.. #Sujit