भ्रष्टाचार के पुल
आशंकित से खड़े
नहीं होते है खड़े फौलादी सीने से
हिलते है पानी के थपेड़ों से
थरथराते है गुजरते हुए भारी वाहनों से |
पुल के बनाने वाला कभी पुल के नीचे
खड़े हो महसूस करता होगा
उन पानी के थपेड़ों को सीने में उठते हुए
जो पुल के साथ उसके मन को भी भर देते होंगे
आशंकाओं से |
पुल से गुजरते हुए डर और वहम
मन में ऐसे रहता होगा उसके जैसे
कोई आधी रात उठ बैठता है
कोई बुरे सपनों से |
भारी मन से कोई क्यों बनाता है
भ्रष्टाचार के पुल ;
खो देता होगा वो मन की शांति
और संतोष के हर क्षण,
नहीं मिलता होगा उसे अपने निर्माण का गर्व,
ढह जाते है कई उम्मीद और भरोसा,
आखिर क्यों बनाता होगा कोई भ्रष्टाचार के पुल ?