उसके आदत में शामिल हो ,
तुमने उसको वहीँ छोड़ा,
ऐसे हाल में उसको छोड़ा,
जैसे नशे की फ़िराक में,
तड़पता सा कोई सख्स ।
हाँ नशे की आदत थी,
दिन की हर बातों की,
पुर्जी बनाता था वो,
और रातों को तुम्हें सुनाता था ।
कभी हँसाता तुम्हें,
और थोडा खुद भी हँस लेता,
कभी मनाता तुम्हें,
और थोडा खुद भी रूठ जाता ।
अकुलाहट सी होती उसको,
किससे कहे सब किस्सा,
ये जो बातों का नशा था उसे,
अब शब्दों को दबाये रखना,
एक जलन सी सीने में,
और बैचैनी भी चेहरे पर ।
तेरी आदत ने बड़े अधर में छोड़ा,
नज्म न लिखता तो अबतक,
दम घुट गया होता उसका ।
#SK