मौत अब मौत नहीं सियासी उत्सव सा हो जाता,
बन जाता उल्लास और मौका सबके लिए ,
लम्बी लम्बी गाड़ियाँ रफ्तार से आती ,
उतरते है कुछ लोग जिनसे उसका कोई नाता नहीं,
न दोस्त है न दुश्मन ही न रिश्ते के कोई लगते,
फिर भी वो आते है सादे लिबास में !
बढ़ जाती है बिक्री फूलों और मोमबत्ती की,
वो आते है हाथों में भारी रकमों का चेक लिए,
थमाते है किसी की माँ की हाथों में वो कागज,
वो हाथें जो लाल और गीली है आंसूओं से,
फिर वो कहते है वही पुरानी सी रटी हुई पटकथा,
चीखों और रुदन को भर देती है भाषण की तालियाँ !
मौत तो वो नहीं जो बंधुकों और रस्सी ने दी,
मौत तो वो थी जब अख़बारों की लाखों प्रतियों में उसे,
छापे के मशीनों से गुजारा गया ;
मौत तो वो थी जब खबर के नाम पर,
खबर बोलने वाले हजारों गलों से चीखा गया ;
मौत तो वो थी जब विद्युत के कई तारों से गुजारकर;
लाखों चित्रपटों पर उसको दिखाया गया !
ए मौत तू अब एक कविता नहीं ,
तू खबर है जिसे चीखा जायेगा ,
तू नग्न बदन है जिसे नोंचा जायेगा ,
तू एक अवसर है जिसे लपका जायेगा ,
मरने के बाद भी रोज सुबह बेमौत तुझे,
वापस जिन्दा किया जायेगा !!
ए मौत तू अब एक कविता नहीं …
#SK
Your poem is very fine .i most like.
Thanks …