गली गली भूले है कई रस्ता !
पीठ झुकी कैसा है ये बस्ता !
खाक से सपने देखते हो ,
नींद रहा अब इतना क्या सस्ता !
देख चेहरे रुखी रुखी अपनी,
फिर भी तू किस पर है हँसता !
कह कहे लगाकर चुप हो जाते,
अब ये शोर शायद नहीं जँचता !
भागे फिरते ठोकरे खाकर,
सूखे गले जब तरस जाये,
कभी देखना अपने अंदर,
हर सुकून तुझमें ही बसता !
अब भीड़ ही भीड़ दिखेगी हर तरफ,
जहाँ से तू चलेगा वही होगा तेरा रस्ता !
कभी देखना अपने अंदर,
हर सुकून तुझमें ही बसता !
– : Sujit Bharadwaj