शब्दो के दरमियाँ फासले बहुत थे ,
पर कुछ बातें तो निकली जुबान से !
अनसुनी न थी बातें मेरी ,
मगर गुस्ताख़ी का नाम दे गये !
यूँ तो फिदरत ही नही समझाने की,
कहते कहते बस एक अंजाम दे गए !
रचना : सुजीत कुमार लक्की
The Life Writer & Insane Poet
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अच्छा है संवाद अच्छा..टेम्पलेट अच्छा है, पिक्चर अच्छा है।
” वो पास से गुजरे पलट क्र भी नही देखा,
हम कैसे मन ले की वो दूर जाके रोये …”
ये भी बेहद अच्छा है।
बहुत बढ़िया.
Hmmm 🙂
ATI SUNDAR ABHIVYAKTI
SHUKRIYA VICHAR BHAVON KO BAANTNE KA
SAMAY HO TO MERI POEMS PADHNA