मेरी बात ..अब तेरी बात ..
मेरा दर्द .. अब तेरा दर्द ..
कुछ चंद लम्हों के लिए ही सही ,
ऐसी कुछ बिछी बिसात थी !
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दिन काली .. रात नीली .. कैसी ये बात थी ..
उम्मीदों के महल ढह ढह रहे थे धीरे धीरे ..
अब बस धीमी धीमी सी एक आवाज़ थी .
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भीग लो जी भरके …
आपकी हंसी की चाह लिए..
ये हमारी आंसुओं की पहली बरसात थी !
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नींदों को दे दिया ख्वाबो का सहारा ..
सामने थे जब वो मेरी आँखे झुक गयी …
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जब शब्दों मे हो गम , क्यों देखे वक्त हम …
हँसते हँसते ही सही तुम पूछते सही .. क्यों मेरी आंखे नम ..
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कुछ छुपी हसरत कह लेते अपना मान कर !
अनजानो मे तुमने लिख रखा था नाम हमारा ! हो के
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भावनाओ का सैलाब था ऐसा उमरा
हमारे ही शब्द , हमसे अपना अर्थ पूछ बैठे ..
रचना : सुजीत कुमार लक्की