सुनी सी ये शाम है अब की,
दिन दुपहरी लगती वैशाखी !
कुछ रंग फीके लगते इस जग के,
ये मन अपना किस तलाश में भागे,
कभी कोसता नाकामी पल को,
लगा सपनों की पंख उड़ने को !
ख्वाब सजाता साथ हो कोई,
ख़ामोशी में सुना बन कोई !
दीखते बदले रंग चेहरों की,
एक जरिया ढूंढे खो जाने की !
मन का पंछी डरता साथ ना छुटे,
डाली पत्ती के बाँहों की !
कई रात दिन इस कदर बीती,
बीती कई शाम और सुबह !
आस लगाये ना जाने किस पल की,
आने वाले किस अनजाने पल की !
क्यूँ ठहरता मन अनजानी राहों को पाकर,
क्यूँ सुनाता आह तू अपनी बैरी लोगों को पाकर !
Thoughts : # Sujit Kumar
Unse Milkar Rab Ki Ibadat Bhool Gye
Unki Adaye Dekh K Apni Aadat Bhool Gye
Ye Kaisa Jadu Kr Diya H Unhone
Unko Chah Kr Duniya Ki Chahat Bhool Gye