आज जिन्दगी की कसमकश में हमने अपनी उन अपनी पुरानी यादों को पीछे छोड़ डाला जहाँ हमारे मन का कोई कोना आज भी वही बसता है , माँ के हाथों का खाना हो या , दोस्तों के संग की शरारत , पिताजीका डाटना हो या अपने गाँव की खेतो की हरयाली , खुशिओं का कलरव , कैसी वो होली , वो बीती दीवाली धुंधली पर गई यादें सारी…॥
वक्त तो बढ़ रहा पर मुझे लगता जरा ठहर के,
छोड़ आया पीछे खुद को; बस यादें रही शहर के,
सुबह तो आज भी होता यहाँ पर वो पंछी नही डगर के,
शाम तो हुई यहाँ भी पर सूरज टँगा रहा ऊपर अम्बर के !
बंद आंखें ढूँडती जरूर उस लहर को ,
जो हमने ख़ुद छोड़ा था किसी पहर पर ,
क्या लौटेगी वो कभी मेरी नजर पर या ,
गुम हो जायेगी सब जो यादें है मेरे शहर के !
Written & Posted By : Sujit Kumar Lucky (सुजीत कुमार लक्कीं)
Hi nice one